Friday, August 29, 2014

हम उस प्रभु के सेवक है जिसे आज के विद्वान लोंगा मनुष्य कहते है।

हम उस प्रभु के सेवक है जिसे आज के विद्वान लोंगा मनुष्य कहते है।

अच्चे दिन के चक्कर मे “मानसून कि ओर ध्यान ही नही जा पा रहा है”

अच्चे दिन के चक्कर मे “मानसून कि ओर ध्यान ही नही जा पा रहा है” 
जो एकटक लगाए हर बार कि तरह बैठे है, उन्हे दिखाया ही नही जाता 
“उनका ध्यान केवल और बस केवल मानसून पर ही है” – सालभर कि कमाई हेतु मेहनत भी नही कर पा रहे है !! 
वाह रे आईना वाह से दर्पण .....सुन रहा है न तु, सुन रहा हु मै..बस....

शूर्पनेखा जी, सीता जी, द्रोपदी जी

महानुभाओ निम्नांकित् को मान लिया जाय, सही है या गलत...! या इस पर कोई विद्वान प्रकाश डाल भ्रम को दूर कर पूर्वाग्रहो से पीडितो को थोडी बुद्धी देने की कृपा करेंगे! 
हमारे साथ कई होंगे जो अन्धेरे या उजालो के सन्दर्भ मे आंखे खोलेंगे....कृपया....रास्ता दिखाये..
1) शूर्पनेखा जी - मैने उस आदमी को दिल दे बैठी, यही गुनाह के लिए कुरूप कर दी गयी ! तो उनके पिता श्री कि तीन पत्निया क्यो.....?
2) सीता जी - बडा कौन? वह मेरे हा के इंतजार मे जान गवा बैठा, दुसरा के लिए मुझे अग्निपरीक्षा देनी पडी !
3) द्रोपदी जी - मुझे भी पवित्रता की मूर्ति कहा गया ! सभी को एक जैसा सम्मान और प्यार के लिए बांट दी गयी.....
शिक्षक, अभिवावक और माता - पिता चाहे तो समाज मे व्याप्त हर तरह के भ्रष्टाचार और अराजकता को दूर कर सकते है तथा समाज मे करूणा, प्रेम और जिम्मेदारी एवम उचित निर्णय को स्थापित कर सकते है, अन्यथा और कोई मकेनिज्म का ईजाद न हुआ और न होंगा! जो किसी मकेनिज्म कि आशा करते है या बन्धवाते है वे स्वार्थी है और कुछ नही - यह आधार बनाने के लिए ...उसके बाद तो व्यवस्था है पकड बनाये रखने के लिए!

हमारे कुछ लगातार आन्दोलित है या नामांकन कर रहे है ...?

हमारे कुछ लगातार आन्दोलित है या नामांकन कर रहे है ...? 
इस नश्वर जीवन मे सबकुछ परिवर्तनशील है, फिर विद्वेष .... क्यो? 
सुनी-सुनायी और सन्क्षिप्त पढाई से बात नही बनेगी ! 
मूल मे जाय और मूल कि कापी पढे ! सारा भ्रम दूर होंगा ! 
वैसे तो मै भी सूना कि साप सर्वाहारी न हो कर केवल मांसाहारी है ! 
भ्रम कि स्तिथि उत्पन हो ही जाती है , जब् अपने – अपने सुविधा अनुसार बिना पूरी तरह से समझे तथ्यो को विश्लेषण करके समर्थको के बीच लोकलुभावन रूप मे पेश कर देना और अपने को सही प्रतीक कराने हेतु कुछ भी करना / करना ! 
कई आनदोलन अपनी अंतिम अवस्था मे है, भ्रम कि जाल ज्यादा दिनो तक नही रहती !

मै मूल्याकन कर कहता हू - असंतुष्ट, अक्षम और अज्ञानी हू, थोडा चोर और ठग भी हू...

मै मूल्याकन कर कहता हू - असंतुष्ट, अक्षम और अज्ञानी हू, थोडा चोर और ठग भी हू पर कामचोर नही और स्वार्थी नही, सम्पन्न और गरीब हू, शांतिप्रिय हू पर अशांत हू, आशावादी हू पर थोडा निराश हू, भय रहता है पर निडर हू, ठोस और मेहनती हू, ईमानदार हू पर थोडा अनियमित हू, भक्त हू पर अन्ध भक्त नही, पुर्वाग्रह रहित होना चाहता हू पर लपरवाह नही, अव्यवहारिक हू पर आचरण हीन नही, ईर्ष्या-घृणा और लोभ तथा लालच से बचता हू पर लालसा व विलास से घिर ही जाता हू, मन का करता हू जो समाजोपयोगी है, इच्छा बहुत है पर वर्तमान का समर्थन करता हू, भविष्य से थोडा भयवित होता हू पर अतीत सहारा देता है, पूर्वजो का मान है पर संतानो से प्रेम, मोह उत्पन्न होता है पर अन्हकार को कुचलता हू, भक्ति करता हू पर पूर्ण समर्पण नही दे पाता, जितना मिला खुश रहता हू पर जिज्ञासु हू, क्या - क्या कहू कभी - कभी स्वाभिमानी हो जाता हू, पडोस से घृणा नही दोस्त से ईर्ष्या नही, सम्बन्ध निभाना चाहता हू पर सम्बन्ध समझ पाता नही ........
आज समझा आज़ादी व विकास का मूलमंत्र - जो समाज और देश के लोंग मूलकर्तव्य को निभाते है वही अधिकारो का भी उचित उपभोग करते है और वे विकसित है, समपन्न है !

भ्रम फैलाने से खुद ही नहीं मानवता की हानि होती है।

गन्दगी फैलाने से वातावरण ही नहीं आत्मा भी मैली होती है। 
जैसे भ्रम फैलाने से खुद ही नहीं मानवता की हानि होती है।

सभ्यो से त्रस्त सभ्यता।

क्या उचित क्या अनुचित? 
मेरे समझ से" 3 हज़ार सालो से तो garima बनाने और बनाए रखने मे समाज कई भाग में बटा है। 
सभ्यो से त्रस्त सभ्यता। 
जय हो..."

manipulations of poverty

To control the manipulations of poverty control for political use, and change the way of thinking of poverty standing to mismanagement as same forever..., both stage is benefited to users as continue to exist - viewers only do like .. .

क्योकि एक मे "स्लीपर सेल" तो दूसरे मे "सबसे शक्तिशाली तबका को सडक पर आना और सबसे प्रभावशाली को पीछे गोली मारना" है न असहनीय..

मित्रो ! HOLIDAY और SINGHAM RETURNS समिक्षको को अच्छा नही लगा, क्योकि एक मे "स्लीपर सेल" तो दूसरे मे "सबसे शक्तिशाली तबका को सडक पर आना और सबसे प्रभावशाली को पीछे गोली मारना" है न असहनीय...
उनके लिए जो PRO-active for outstanding merit man क्लब के मानद सदस्य है, वे उतने सभ्य और पोषित है कि छिंक आने पर भी अपनी outstanding merit को नही भूलते, गरिमा बनी रहे. लगी, नही तो आगे पढे उनकी सम्भावनाओ के आगे कुंठित होना लाज़मि है नही तो .........लिफ्ट, प्राइवेट कार्यालय यथा कही भी टूटना तो पडता ही है....

The ugliness of poverty-गरीबी की कुरूपता, say-say bro, whats....

Appeal to friend, who have sympathy, apathy and empathy - and work for them. firstly make sandwich of both and chew it. have guts to do it. many are work for eliminate that but not in honesty way for both side effect-less. 
The ugliness of poverty-गरीबी की कुरूपता, 
The two main reasons, this remains ( दो मुख्य कारणो से यह कायम है )
say-say bro, whats......
my opinion - 1. be used every time on democratic festival. 2. The ugliness of poverty mindset that our status is forever, then why we change former stage - we are always same. No body delete ugliness of poverty, not this time - nor that time.............., only in records
मेरी राय - 1 लोकतांत्रिक त्योहार पर हर बार इस्तेमाल किया जाना. 2 हम पूर्व अवस्था बदल क्यों हमारी स्थिति तो हमेशा के लिए है,गरीबी की कुरूप मानसिकता - हम हमेशा एक ही हैं. कोई मिटा या हटा नही सकता, न इस बार - और न ही उस समय .............. केवल रिकॉर्ड में

आज कोई भी अपने को एक वर्ण का नही कह सकता, सम्भव है मित्रो - देखने कि कोशिश की...”बन्धुत्व हो, शिक्षित हो व शिक्षित करो और हमेशा संघर्षशील रहो”

आज कोई भी अपने को एक वर्ण का नही कह सकता, वर्ण आधारित कर्म और कर्म आधारित वर्ण के आधार पर कम से कम मै तो नही कह सकता, मेरे द्वारा की गयी कर्मो मे चारो “वर्ण आधारित कर्म और कर्म आधारित वर्ण” कि कर्तव्य और जिम्मेदारी सम्मलित है. चाहे वह कोई हो बिना चारो का अस्तित्व का व्यक्ति ढूंढ पाना मुश्किल है. इस मुश्किल के कारण कई सम्भावनाए पैदा हुयी है – “जाति आधारित जन्म या जन्म आधारित जाति” का अस्तित्व मुश्किल मे आ जायेगा ! कई मठाधीशो को रोजी-रोटी की अन्य व्यवस्था अपनानी पडेगी ! जातिगत संगठन और जाति विरोधी संगठन का अस्तित्व खतरे मे होगी ! समाज नूतन अंगडाई लेगी और समरसता तथा सामंजस्य को बढावा मिलेंगी ! हुनर को सम्मान और पहचान होगी ! आरक्षण और पैरवी कि जरूरत नही, (पर निष्पक्ष चुनाव और सभी के लिए भागीदारी व हिस्सेदारी का खुला मंच हो )! अतीत कि भूलो कि सही पहचान और उसकी रोकथाम कि उचित व्यवस्था कि जायेगी ! कई विद्वान और स्थापित संगठन नाखुश होंगे, व्यक्ति आधारित विचारधारओ का ह्रास होंगा और यथार्थ तथा अनुभव आधारित समाज कि पहचान होंगी ! व्यक्ति केवल अपने और परिवार से उपर उठकर समाज को देखना शुरू करेंगा ! – यही से स्वार्थहीन, अमर्यादाहीन, अराजकताविहिन और संकुचित सोच विहिन समाज का वातावरण का मंच बनायी जाने लगेगी !


सम्भव है मित्रो - देखने कि कोशिश की...बन्धुत्व हो, शिक्षित हो व शिक्षित करो और हमेशा संघर्षशील रहो

Monday, July 14, 2014

कलयुग के पहले लोग अपने वचन से बंधे रहते थे।

कलयुग के पहले लोग अपने वचन से बंधे रहते थे।
इसीलिए धार्मिक पांडव को अधर्मियों के साथ लम्बा युद्ध करना पड़ा और कई अप्रिय और यश-रहित मार्ग अपनाने पर मजबूर होना पडा। पहले धर्मं का अनुसरण होता था निर्वाहन होता था। अब ज्यादा नफ़ा नुकसान देख कर संवहन किया जाता है।

Saturday, July 5, 2014

Please read...., why? Do You Have A Business Model?

Please read...., why?  Do You Have A Business Model?
In this world there are so many passionate people who is doing great work for society with pure intention without thinking of sustainability and business model or revenue plan. They have sacrificed their career and LIFE to create some value in this world. It's sad part that instead of encouraging such Gandhi's in today's world ,still our society and people are asking same questions.
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Friday, July 4, 2014

समाज के अगुओ को फोकस इन सभी कि ओर होनी चाहिए।

पंथ संघर्ष के इस दौर में होना यह चाहिए की पहले सनातन कि उचित और सही तथ्यों व विचारों से समाज में सही व्याख्या को प्रस्तुत किया जाए। तब अपने आप वर्तमान संघर्ष साकारात्मक रूप में स्थिर होंगा। क्योकि पन्थाचार्यो का योगदान स्वामी विवेकानंद जी के बाद सनातन हेतु नागान्य ही समझे। जितनी मुह उतनी हठ और वैसा ही बजरामूठ की तरह पकडे हुए अनुयायी और अगुआ। हमे बताये वाह जी वाह।।
समाज के अगुओ को फोकस इन सभी कि ओर होनी चाहिए।


Come ! We also come in this category ? बह रहे बयारो का अनुभव रोज़ होता है, और बस शिशकिया दिल से निकलती है

Come ! We also come in this category ?


कर्णधारो से हमेशा अपेक्षा रही कि बन्द करो, लेकिन हमे क्या मालूम उससे रोजी-रोटी जुडी है.. ! बस यही चुप हो जाना पडता है कि बूरा न लगे उनको, क्योकि कल वे हमारे कुछ काम आये ?
इसके बाहर जीना मुश्किल है......, बह रहे बयारो का अनुभव रोज़ होता है, और बस शिशकिया दिल से निकलती है तथा दिमाग गहरी सोचमे....!

Thursday, July 3, 2014

जो भी चीज तुम्हारे दीमाग को गुलाम बनाती हो और

"जो भी चीज तुम्हारे दीमाग को गुलाम बनाती हो और
 जो भी चीज तुम्हारे भाग्य के आगे तुम्हें लाचार बनाती हो,उसे दूर कर दो"

Tuesday, May 20, 2014

परिवर्तन शब्द----कितना मज़्ज़ा आयेगा !

परिवर्तन शब्द भी अब पर्दाजनक उपयोग के आदि हो गया है. सार्थक परिवर्तन कोई करता नही, चाहने वाले को मिलता नही ! इस लिए वही करते है - जो आप चाहते है, पर होता वही है जो मै चाहता हू. अगर होने लगे यह - "होंगा वही जो आप चाहते हो", कितना मज़्ज़ा आयेगा !

बात अलग है कि जैसे तैसे जीवन है.........

मनन चिंतन और विचार एकाग्रता मे होती है तो...फिर विस्फोटक निर्णय और व्यापक प्रभाव लिए समझदारी उत्पन्न होती ही है ! बात अलग है कि जैसे तैसे जीवन है.........

Friday, May 9, 2014

संघर्ष और शांति ही जीवन है

संघर्ष और शांति ही जीवन है

सभी बातो का खात्मा केवल सामंतवाद, आतंकवाद, अलगावबाद...वाद...वाद..के खात्मा से है. जो नये रूपे मे नये चोंगा लिए समाज मे पैठ बनायी है और नित्य रोज मच्छरो कि तरह बढ रही है. अन्य लोंग को कौआ समाज और संस्कृति जैसा जीवन जीने को मजबूर !

संघर्ष और शांति ही जीवन है, ..........संस्थानो के बिना लोकतंत्र नही, विचारधाराओ से कुछ मिला नही, केवल ज्ञान के लिए सही है, जीने के लिए नही ! संघर्ष करने के बाद शांति मिलती है, मेहनत के बाद नेकी, बिना कर्म किये बोझ डालकर या डलवाकर, थोप कर नेकी करना, नाम कमाना, और पहचान बनाना अच्छा है लेकिन सार्थक नही !

Friday, May 2, 2014

हो रहा भारत निर्माण ......................

देख मेरे संसार कि हालात कैसी हो गयी भाई......,
जब दिल्ली कि जनता ने किसी को बहुमत प्रदान नही करा सकी तब बहुत ही अफसोस हुआ ! मगर कही ज्यादा खुशी और उल्लास मिली कि जमीन से उठा और सभी तथाकथित व्य्वस्थाओ तथा कई तरह के भ्रमित करने वाली विचारो को धत्ता बताते हुए आप ने सरकार बनायी ! सोच कर ही मन प्रसन्नचित और रोमांचित होता था, नई जोश और तरंग पुरे देश मे चलने लगी ! नया समाज और वयक्तित्व सा महसूस होने लगा ! पर हुआ क्या......,
अब तक के आप का निर्यण सभी कि आशाओ को कूचल कर उस राह पर चल दिये, जहा सपनो का मर जाना तय है ! अस्तित्व भी खतरे मे और आश तो पूरी तरह टूटा हुआ ! आप एक उदाहरण बने लेकिन आयुष कि कोई गारंटी भी नही रही ! "अब फिर कभी अखरा मे डाल संजायेगे, अभी बचे  है शेष प्राण खोखली काया (जन) मे" ! मकड्जाल मे फंस कर आप भी वही रह गये और फंस फंसा के चल रहे है !
अब न कोई तीर पार लगा सकता है और न कमान ! बिन कमान के तीर पडे- पडे आप को जोश दे रहा, क्या आप मे वह आत्मविश्वास बचा है ! 

Friday, February 21, 2014

यही एक रस्ता है !

मूल अधिकार या गैर - मूल अधिकार कानूनो और व्यवस्थाओ द्वारा कभी भी प्राप्त नही किया जा सकता, समाजिक संवेदना, सामंजस्य, समरसता, संबन्ध के द्वारा ही अधिकारो को भोगा जा सकता है !
यही एक रस्ता है !

दोनो का मिश्रण अहंकार को कम करने का साधन है !

भ्रष्टाचार इस कदर व्यवहार से होते हुए व्यवस्थाओ मे बैठ चुकी है कि इसे खत्म करने के लिए कोई मैकेनिज्म कम से कम भारत मे नही है ! 
हमारे विचार से केवल यह कम हो सकती है तो अपने व्यवहार मे परिवर्तन कर और प्रोटोकाल कि जरूरतो को जितना हो सके कम अपना कर!

दोनो का मिश्रण अहंकार को कम करने का साधन है !