Tuesday, September 11, 2012

शिक्षक दिवस की शुभकामना के साथ एक छोटी कहानी - संघर्षरत शिक्षक !

शिक्षक दिवस की शुभकामना के साथ एक छोटी कहानी - संघर्षरत शिक्षक !

जब मै कक्षा 3 या 4 मे था, उस दौरान छात्रावास मे रह कर अपने दो भाई आलोक व रूपेश के साथ रहता था. उसी दरमियान एक लगभग 18 वर्ष के उम्र के मेधावी युवक स्कूल मे शिक्षक की नौकरी के लिए आये, उन्हे पढाने तथा शारीरिक विकास मे योगदान हेतु कुश्ती, खेल की जिम्मा सौपा गया. वे खुद कुश्ती के शौकिना थे.

अपना परिचय देते वक्त उन्होने एक फते की बात क...
हे " मै इससे पहले किसी कम्पनी मे 20 हज़ार रूपया पर नौकरी ज्वाईन करने वाला था, लेकिन अंतिम समय ज्वाईनिंग के पहले मुझे सभी के सामने टाफी (लेमचूस) पर कुछ कहने को बोला गया, पहले तो मै अचम्भित हुआ, फिर भी कोशिश किया और लगभग 2 मिनट मे अपना लेक्चर खत्म किया, इंजिनियर के रूप मे काम करने वाले से 20 मिनट तक लेक्चर देना था ! मै कहा अब हम इससे ज्यादा नही बोला सकते, लेकिन बोर्ड ने उत्साह के साथ दबाब बनाना शुरू कर दिये, मै भी सोचा पर दिमाग मे कुछ नही आ रहा था, की टाफी पर क्या बोले, स्वामी विवेकानन्द जी जैसा हमारी बुद्धी नही है. वे लोग रूष्ट हो गये और नौकरी से हाथ धोने की धमकी तक दे डाले !

मुझे भी यह व्यवहार अच्छा नही लगा, वे अभी बोलते की यू आर डिस्मिट, उससे पहले अपना पद छोड वहा से निकल गया !
अब आप सभी बताओ क्या एक इंजिनियर मार्केट मे बेचने वाली स्पीच कैसे दे, सम्भव था की मै खिचता लेकिन मुझे यह गवारा नही लगा ! एक तरफ 20 हज़ार की नौकरी, दुसरी तरफ मा - पिता की आशा! अखिर मे मुझे परिवार को निराश करना पडा ! दुखी मै अत्यधिक था, लेकिन अंतरात्मा से खुश !

निराश परिवार ने भी मुझसे बोलना छोड दिया, सो मै अपने रिश्तेदार के यहा अपनी मनपसन्द का काम खेती और बच्चो को पढाई के लिए सोचा और आगे उचित सम्भावना हेतु प्रतिक्षा !

घर जा नही सकता हु क्योकि परिवार का कहना है की " खेती करोगे, भैस चराओगे, यह हम सह नही सकते, इतना क्यो पढाया तुम्हे, नाक कटाने के लिए !

मै यहा खुश हू, खेती मे भी हाथ है, भैस पर भी ध्यान है तथा पढाई भी चल रही है !
अब आप लोग बताओ इसमे मेरा क्या गलती !
हम सभी बोले - सही है सर !

सर जी शिक्षक के साथ हमलोंगो का दोस्त भी थे, कुश्ती लडना, शारीरिक मेहनत वाला खेल खेलना उस समय रूचिकर हो गया था !
उनका नेचर के बारे मे मै बस यही कहुंगा की किसी अनुचित को न सहने वाला, हम बच्चो की हर बात को सुनते थे - एक वाक्या बताता हु - " एक बार किसी कारण वश उनको भयानक गुस्सा आया, उन्होने सबसे बदमाश दोस्तो की टोली के बदमाश लडके को अनुशासनहीनता यानि शाम के पढाई के समय बदमाशी कर अन्य को परेशान करते वक्त दो थप्पड रशीद कर दिये ! बस अब क्या था, मारने के बाद वे उसे तुरंत मनाने लगे और उसने आव न देखा ताव झट से चेहरे पर कई मुक्का मार दिया, वे सह गये और अन्य बदमाशो से उसके गुस्से को शांत करने के तरीका और नुक्शे पुछने लगे ! वह तो बस बोला जा रहा था - तमतमाया हुआ !
सभी बदमाश लोग एक जगह इकठ्ठा हो उसे समझाने लगे कुछ शांत हुआ, तब तक वे भी आ गये और उन्होने रोते हुए, हाथ जोडकर कहे- " मुझे माफ कर दो, मै अभी स्कूल से जा रह हु, लेकिन तुम मन को शांत कर लो ! जब तक शांत नही होते मै मुझे हमेशा यह कचोटते रहेगा !"

बदमाशो ने एक साथ हुंकार भरा और बोला - " देख बे बहुत हि गया, अब नही माने तो हम सब एक साथ नही रहेगे, आज से बातचित बन्द, रहो अपने जिद्द मे ! वहा से सभी चले आये, लेकिन वे उसके साथ वही रहे, और एक ईट के आधा टुकडे को देकर बोले - लो मारो कस कर मै नही भागूगा", इतना सुनते ही वह हसने लगा और वहा से भाग कर हमलोंगो के पास आकर बोला - माफ कर दिये, नही तो आज रात को हम घर रहते परिवार के साथ !
इतना सुनते ही कहा गया - बडा अच्छा किये बे, गलती तो हमलोंगो का था, जुनियर लोंग भी देख रहा था, पढाकू लोंग चिढ रहे थे और शिकायत भी छुप कर कर रहे थे ! कई बार मना करने पर नही माने, की सर तो दोस्त है, सर थोडे है !
उसके बाद रात का खाना सभी बच्चो को वही परोसे, जिससे कुछ असामान्य न लगे !
फिर अचानक एक दिन पता चला की सर जी का कही से काल आया है की यहा आकर आप ज्वाईन कर सकते है. वे खुश थे अपनी कौशलता और हुनर सही मार्ग देने चल दिये !
आज अचानक उनकी याद दोपहर को खाने के वक़्त आया, सोचा और घटनाओ को जोडने मे सफल रहा ! उनकी टाफी के सन्दर्भ की किस्सा जो दिल को छुए है ! और बदमाशो की टोली की कई यादे !

शिक्षक दिवस अमर रहे !

सभी शिक्षक बने !

Tuesday, September 4, 2012

बिचौलियो की मुनाफाखोरी से बचो समाज !

बिचौलियो की मुनाफाखोरी से बचो समाज !
अगुवाओ, महात्माओ, धर्मगुरूओ, वे जो आपके जमात का लाभ उठाया के प्रति आकर्षण रखो, उनके जीवन - प्रणाली, जीवन चर्या को देखकर ! " कर्म करो और खुद बनो, देव से खुद करो मंत्रणा, किसी बिचौलियो की जरूरत नही ! क्योकि हर स्तर और सेक्टर के बिचौलियो ने वैभवता कमाया और वैनमस्यता दिया - जो आपको मिला किनारा के साथ !
आप भी हो सकते हो खुदा का खुद, बचो उनके मुख के वाणी से जो उगलता...
है अध्यात्म और नैतिकता, लेकिन वह खुद है भौतिकता का आदि !
यहा एक ओर महान ईश्वर भक्त हुए है, उसमे से भी लोंगो ने आडम्बरित किया और भक्त और भक्ति तथा देव और चढावा के बीच खडा है ! वही दुसरी ओर वे महान लोंग भी हुए जो ईश्वर को स्वीकार नही कर सके, लेकिन यहा भी पहले वाली पंथ की जैसी स्थिति हो गयी !
ठीक उसी प्रकार समाज के हर स्तर - हर रास्ता, हर कर्म / काम - हर उद्देश्य, हर जगह - हर सेक्टर मे बिचौलिया का ऎसा जमात खडा हो रहा है, जो लाइलाज बिमारी से भी घातक है, अनुभव तो होगा - समाज !
अगर हम शरीर को समझे और अध्यात्मिक विश्लेषण पर पहुचे तब मुख - ब्रह्मण, भुजाए - क्षत्रिय, पेट - वैश्य, पैर - शुद्र ! क्या गलत है इसमे, लोंगो ने इसे एक जामा पहनाया और थोपा समाज इसे वहन करने लगा ! पर आज भी आधुनिक समाज के लोंग अपने विचार से इसके नाकारात्मकता को दूर करने की कोशिश कर रहे है, पर दूर हो नही रहा ! ठीक आज की हमारी वयवस्था उसी प्रकार का हू-ब-हू सांकेतिक है - पैर - कामगार, जिस पर शरीर - समाज टीका, पेट - मुनाफाखोरी, कालाबजारी, घोटाला, बिचौलिया, धन संग्रह, जो उर्जावान है और शरीर - समाज के जीवन रक्षक व भक्षक, भुजाए - पुलिस - प्रशासन, कानून व रीति - रिवाज़ो का संचालक, यानि समाज और शरीर को सुरक्षा और असुरक्षित करना, अब सबसे उपर का भाग सर का भाग, मुख - कंट्रोल पुरा शरीर का, समाज का, ज़ुबा पर ही विचारधारा का मार होता है, पंडित्य उजागर होता है, नीति बनायी जाती है, जिस पर पूरा का पूरा वयवस्था टेका है, है न वही अवस्था हर स्तर का जिसका शिक्षा दिया जाता है, अब सोचे की आज भी ठीक उसी वयवस्था के मारा है समाज ! समझने और समझाने की फेर है !
इसलिए स्वय समझे, पहल करे, गुणे और लागू करे, धीरे - धीरे धोखे-बाहुबलो पर बने कमर के उपर के हिस्से / प्रतिको को एहशास कराओ, अब नही, अब वही होगा जो समाज के कामगार कहेंगे, वही ऊपरी हिस्सा बन पायेगा जो योग्य होगा !
समय भी नजदीक है - दिखा दो और मौका दो - एक बार तो कम से कम, आगे का रास्ता खुद तय होगा !
शुभ आकान्क्षा !