Saturday, May 4, 2013

My brother would be alive today if it were given the money! मानवाधिकार कार्यकर्ता कि काली करतूत पढे -


मानवाधिकार कार्यकर्ता कि काली करतूत पढे -

 " भाई (सबरजीत) की रिहाई को मांगे थे 25 करोड"

शहीद सबरजीत सिह की बहन दलबीर कौर ने गुरूवार को दिल्ली मे यह भी दावा किया कि मानवाधिकार कार्यकर्ता ने उनके भाई की रिहाई के लिए 25 करोड रूपये की मांग की थी ! यदि रूपये दे दिये होते तो मेरा भाई आज जिन्दा होता !
जिस आत्मविश्वास से बहन कही, उससे तो यही लगता है कि साठ - गांठ कितना मजबूत होता है सत्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता का, अगर साठ - गांठ नही है तो भी क्या यह मांग वाजिब है !
इसे कहते है "play with emotion & earn money from survivors," make a platform for interest of conflict. सही है गुरू, लगे रहे और मनाते रहे कि मुद्दा और मुल्ला किसी मे से एक जबर्दस्त मिले ! भूनते रहो - खाते रहो, और कहो समाज उद्धारक है! क्या लगता है आपको...


तीसरी मोर्चा से एक - दो कशमकश व पेशोपेश मे, अगर इस बार नही तिसरी तो कभी नही !

तीसरी मोर्चा से एक - दो कशमकश व पेशोपेश मे, अगर इस बार नही तिसरी तो कभी नही !
 तिसरी मोर्चा का आना मतलब एक अच्छी व महत्वपूर्ण बात यह होंगी कि चौथी मोर्चा को सबल मिलेंगा और हो सके तो सफल मोर्चा बनाने कि तरीका और शक्ति ! फिर बारी आयेंगी पाचवी मोर्चा का, जो चौथी से भगा दिये जायेंगे, अगर नही भगाया गया तब चौथी मुह ताकते रहे और फिर पहली और दूसरी स्वत: खडा, इसलिए चौथी कि लडाई व अगुवाई खुद का हो, जिससे सीना तान गर्व से कहे जय हो !
 अब पाचवी का क्या होंगा जो हर जगह केवल अपना स्वार्थ, मुद्दा और हित - विवाद से जीवन जिये है, यह नही आये तो बेहतर, इससे अच्छा उपर के चारो है व होंगे, चाहे जैसे हो, नही तो तानाशाही, अराजकता तथा पूर्ण सामंती और पुरूषवादी व्यवस्था का जन्म होंगा, जिसकी नमूना असंगठित लोंग झेलते और अपने साथियो को भुगतते देखते है !
 अगर पाचवी आया तब कलयुग कि परकाष्टा होंगी और उसके बाद हो सके तो मानव इतिहास मे फिर सतयुग जैसा समाज हो और एक राजा ! लेकिन तंत्रो मे लोकतंत्र बेहतर जो चौथी मोर्चा के बाद कि सतत मानव विकास के बाद अमेरिकी क्रांति जैसी स्वतंत्र, विकसमुखी और समानता, भाईचारा - लगभग जैसा समाज हो ! जो पूंजीवादी के साथ समाजवादी और मानववादी के आधार लिये होंगा ! सपना काश हो अपना ! - एक विचार आज कि परिदृश्य को देखते हुए ! 

---"अमित अविनाशी"

"विचारधारा दुसरो के लिए है, विचारक खुद उससे मुक्त है, "

जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय स्वाभिमान (देश के युवा जवान)
Against inhuman, for dignity

अभी तक के अनुभव के आधार पर कहना चन्हुगा कि "विचारधारा दुसरो के लिए है, विचारक खुद उससे मुक्त है, " सिद्धान्त और विचार कुछ लोंग देते है, उसके बाद चन्द लोंग चलाते है, बन्धे नही है और लाभ कमाते है, परिवार और अयोग्य को साथ लेकर चलते है, लेकिन बहुसंख्य को साथ रखे रहते है पर उनकी स्थिति आज भी उनकी है, जैसी थी वैसी ही बढती जा रही है ! फिर भी सिद्धांत और विचारधारा के पीछे पागल हो धृष्टराष्ट बने रहते है ! ढोने वालो को विकाश पथ पर जाने कि हर अमर्यादित और असामाजिक कृत्य को देख कर भी नही सिखते ! बताये कब तक गधा या बैल बने रहोंगे, वाहक भी नही बन पा रहे हो ! "छोडो और कहो मानना नही सोचना है और मंथन कर भोगना है !" - 


जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय स्वाभिमान (देश के युवा जवान)
Against inhuman, for dignity