Friday, August 29, 2014

मै मूल्याकन कर कहता हू - असंतुष्ट, अक्षम और अज्ञानी हू, थोडा चोर और ठग भी हू...

मै मूल्याकन कर कहता हू - असंतुष्ट, अक्षम और अज्ञानी हू, थोडा चोर और ठग भी हू पर कामचोर नही और स्वार्थी नही, सम्पन्न और गरीब हू, शांतिप्रिय हू पर अशांत हू, आशावादी हू पर थोडा निराश हू, भय रहता है पर निडर हू, ठोस और मेहनती हू, ईमानदार हू पर थोडा अनियमित हू, भक्त हू पर अन्ध भक्त नही, पुर्वाग्रह रहित होना चाहता हू पर लपरवाह नही, अव्यवहारिक हू पर आचरण हीन नही, ईर्ष्या-घृणा और लोभ तथा लालच से बचता हू पर लालसा व विलास से घिर ही जाता हू, मन का करता हू जो समाजोपयोगी है, इच्छा बहुत है पर वर्तमान का समर्थन करता हू, भविष्य से थोडा भयवित होता हू पर अतीत सहारा देता है, पूर्वजो का मान है पर संतानो से प्रेम, मोह उत्पन्न होता है पर अन्हकार को कुचलता हू, भक्ति करता हू पर पूर्ण समर्पण नही दे पाता, जितना मिला खुश रहता हू पर जिज्ञासु हू, क्या - क्या कहू कभी - कभी स्वाभिमानी हो जाता हू, पडोस से घृणा नही दोस्त से ईर्ष्या नही, सम्बन्ध निभाना चाहता हू पर सम्बन्ध समझ पाता नही ........
आज समझा आज़ादी व विकास का मूलमंत्र - जो समाज और देश के लोंग मूलकर्तव्य को निभाते है वही अधिकारो का भी उचित उपभोग करते है और वे विकसित है, समपन्न है !

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