Saturday, May 4, 2013

"विचारधारा दुसरो के लिए है, विचारक खुद उससे मुक्त है, "

जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय स्वाभिमान (देश के युवा जवान)
Against inhuman, for dignity

अभी तक के अनुभव के आधार पर कहना चन्हुगा कि "विचारधारा दुसरो के लिए है, विचारक खुद उससे मुक्त है, " सिद्धान्त और विचार कुछ लोंग देते है, उसके बाद चन्द लोंग चलाते है, बन्धे नही है और लाभ कमाते है, परिवार और अयोग्य को साथ लेकर चलते है, लेकिन बहुसंख्य को साथ रखे रहते है पर उनकी स्थिति आज भी उनकी है, जैसी थी वैसी ही बढती जा रही है ! फिर भी सिद्धांत और विचारधारा के पीछे पागल हो धृष्टराष्ट बने रहते है ! ढोने वालो को विकाश पथ पर जाने कि हर अमर्यादित और असामाजिक कृत्य को देख कर भी नही सिखते ! बताये कब तक गधा या बैल बने रहोंगे, वाहक भी नही बन पा रहे हो ! "छोडो और कहो मानना नही सोचना है और मंथन कर भोगना है !" - 


जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय स्वाभिमान (देश के युवा जवान)
Against inhuman, for dignity

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