Friday, September 13, 2024

देख जमाने की यारी, केवल आंसू छोड़ जाएगे।

 विकसित सामाज, विकसित मास्तिकता, विकसित शासन-प्रशासन और कुछ कृत्रिम विकास बचा हो तो सोच ले...देश-दुनिया के लोकतंत्र...

प्राकृतिक और नैसर्गिक विकसित विचारों का स्वागत है:-


अतः कुछ पंक्ति हम सभी गुनगुना सकते है...


जहां खिल रहे कागज़ के फूल, वहां बाहर कब तक...

देख जमाने की यारी, केवल आंसू छोड़ जाएगे।

वक़्त ने किया, क्या हसी सितम,

तुम रहे न तुम, हम रहे न हम।।

जाएगे कहां सुझाता नहीं,

चल पड़े हम, रास्ता नहीं।।

जिस घर मे रख दे कदम, 

उल्टे-सीधे दांव लगाए।।

हस-हस के फेका पासा, 

कैसे तुमको फसाए।।

देख जमाने की यारी,

आंसू लेकर दुनिया से मिले,

भुगते गे, सब बारी-बारी।।


साभार....."कागज के फूल"


महादेव।।। श्रीहरि।।। हरि ॐ।।। श्रीं।।।

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