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पुलिस ने हमें पेशाब पिलाया : रामजी गुप्ता
समय Feb 08, 2011
डॉ. लेनिन रघुवंशी पूर्वी उत्तरप्रदेश में ग़रीब और कमज़ोर लोगों पर पुलिसिया उत्पीड़न की कहानियां सरोकार को भेज रहे हैं. पेश है उस श्रृंखला की तीसरी कड़ी. इस बार एक वाहन चालक रामजी गुप्ता और उनके परिवार के साथ हुए भयानक पुलिस उत्पीड़न की दास्तान उन्हीं की जुबानी :
मेरा नाम रामजी गुप्ता, उम्र-50 वर्ष है। पिता जी का नाम स्व. राम प्रसाद गुप्ता है और मैं सिपाह, मकान नं. 252, पोस्ट-सदर, थाना-कोतवाली, जिला-जौनपुर (उत्तर प्रदेश) का रहने वाला हूं। मेरे परिवार में आठ सदस्य हैं। मैं, मेरी पत्नी गायत्री देवी (46 वर्ष), चार बेटे विनोद कुमार (28 वर्ष), मनीष कुमार (26 वर्ष), चंदन कुमार (24 वर्ष), आशीष (21 वर्ष), बहू सीमा देवी (25 वर्ष) और एक पोता आदित्य कुमार (2 वर्ष) है।
मैं पेशे से ड्राइवर हूं, लेकिन अब शुगर की बीमारी के कारण कभी-कभी ही ड्राइवरी का कार्य करता हूं। मेरा बड़ा लड़का विनोद भी गाड़ी चलाता है। वह जौनपुर के ख्वाजा दोस्त के रहने वाले महेन्द्र सेठ का सेंट्रो कार चलाता था। 23 जनवरी को रात्रि 12.30 बजे पिण्डरा बाजार से लगभग 1 कि.मी. आगे एक गाड़ी ने ओवरटेक करके उसकी गाड़ी को रोका और चार बदमाश असलहा से लैस उतरे और सेठ के लड़के अजय सेठ व मेरे बेटे के साथ मार-पीट किये और लूट-पाट किये। मेरे लड़के को अपने साथ जबरन उठा भी ले गये। इस बात की सूचना मेरे मोबाइल नं0-9792731268 पर सुबह लगभग 4 बजे महेन्द्र सेठ के फोन के द्वारा मिला. यह सुनकर मैं डर गया और मन में डरावने विचार आने लगे कि कहीं मेरे बेटे को बदमाश मार कर फेंक न दें! इसी आशं से मैंने सेठ जी को फोन किया और अजय सेठ के बारे में पूछा कि, ‘‘वो कहां हैं?’’ सेठ जी ने कहा, ‘हम लोग थाने पर हैं और तुम्हारे बेटे की तलाश की जा रही है, अगर वह घर पहुंचे तो मुझे सूचना देना।‘ यह सुनकर पूरा परिवार चिंतित हो गया. बहू और मेरी पत्नी लगातार रो रही थी, जिसे देखकर मेरा पोता भी जोर-जोर से रोने लगा।
किसी तरह हम लोग सुबह होने का इंतजार करने लगे। इसी बीच करीब 5:30 बजे सुबह कोई दरवाजा खटखटाया। मेरा दूसरा लड़का जाकर पूछा और दरवाजा खोला. विनोद बाहर खड़ा था। वह जैसे ही घर पहुंचा, कुछ ही देर बाद फुलपुर थाना की पुलिस आ धमकी और यह कहकर उसे ले गयी कि पूछताछ करनी है। उसी दिन से उसे तरह-तरह की यातना दी गयी। उसकी दशा देखकर पूरा परिवार विक्षिप्त-सा हो गया है। पुलिस द्वारा उठा ले जाने के बाद मैं दौड़े-दौड़े थाने गया. वहां विनोद दिखाई नही दिया था. हमने पुलिस वालों से पूछा भी, लेकिन उन लोगों ने डांटकर भगा दिया। यह सब देख- सोच कर दिमाग़ पागल-सा हो रहा था कि आखिर मेरे बेटे को वे लोग कहां ले गये. कहीं मार तो नहीं देंगे, किसी मुकदमे में फंसाकर पूरी जिंदगी बर्बाद न कर दें!
फिर मैंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली को फैक्स किया, स्थानीय पुलिस अधिकारियों को तार, इत्यादि भी किया. कई बार मैं थाने पर गया, लेकिन मुझे मेरे लड़के से मिलने नहीं दिया गया। मुझे हर बार वे डांटकर थाने से बाहर भगा देते थे। इसी तरह दौड़-धूप करते-करते मेरा शरीर थक-हार कर टूट गया। दिनांक 29 जनवरी, 2010 को शाम करीब 4 बजे फूलपुर (वाराणसी) एस.एच.ओ. का फोन आया, उन्होंने कहा ‘‘आकर अपने लड़के को ले जाओ।’’ वहां हम दोनों से हस्ताक्षर करवाया गया। उन्होंने किसी उच्चाधिकारी से बात की और बोला, ‘अभी दो दिन विनोद को और रखेंगे, तीन मुजरिम पकड़े गये हैं, उनकी शिनाख्त करवानी है।‘ लेकिन किसी भी मुजरिम का शिनाख्त नहीं करवायी गयी। इस बीच उसे कठोर यातना दी गयी. और 1 फरवरी को नौ दिन बाद छोड़ा गया. पुलिस वाले बोले, ‘‘बुलाने पर आना होगा।’’
जब मेरे लड़के को मेरे हवाले किया तो उसकी हालत देखकर मैं रो पड़ा। घर लाकर इलाज शुरू करवाया. उसे कुछ राहत मिली और हमें थोड़ी शांति महसूस हुई। इसके बाद फिर 12 फरवरी की रात 12 बजे एस.ओ.जी. की पुलिस हमारे घर आयी और जोर-जोर से दरवाजा पीटना शुरू किया। मेरा छोटा लड़का (मनीष) दरवाजे के पास जाकर पूछा कि कौन है। उन लोगो ने गाली देते हुए कहा, ‘‘खोल दरवाजा, हम पुलिस वाले हैं।’’ पूरा परिवार जग गया। हम सोचने लगे कि फिर से कुछ न कुछ करेंगे। मनीष ने दरवाजा खोला, करीब आधा दर्जन लोग घुस कर मारना-पीटना करने लगे। मेरी पत्नी बेहोश होकर गिर गयी। उस समय मुझे लगा कि मेरा हार्ट फेल हो जायेगा। मेरी पत्नी जब होश में आयी, तब उसको पुलिस वालों ने बूट से मारा और उसकी इज्जत पर हाथ डालना चाहा. लेकिन कुछ पुलिस वालों ने ऐसा करने से उन्हें मना किया। लेकिन वे लगातार मुंह से अश्लील बातें बक रहे थे। मेरी बहू को रखैल बनाकर नंगा नचवाने की बात तक कही. यह सब देख-सुन कर मुझे बहुत क्रोध आ रहा था कि इन सबके साथ क्या कर बैठूं. लेकिन मजबूर था. मेरे हाथ बार-बार कांप रहे थे, लग रहा कि हाथ छोड़ दें. लेकिन विवश होकर केवल हम गिड़गिड़ा रहे थे। घर का सारा सामान तितर-बितर कर दिया और पूरे परिवार सहित उठा ले गये। सिपाह पुलिस चैकी पर ले जाकर दुबारा सभी को मारना-पीटना शुरू कर दिया। जब ये लोग अपने साथ ले जा रहे थे, उस समय लगा कि पैंट में ही शौच हो जायेगा। मैं डरते-डरते उन लोगो से बोला भी. लेकिन उन्होंने कहा, ‘‘चल साले, मैं तुझे कराता हूं।’’ सिपाह पुलिस चैकी पर हाथ-डंडा से मारना शुरू किया. औरतों को जूता से मारा व साड़ी तक खींचा. उसके बाद तीनो मोबाइलें जब्त कर ली, जिनका नं0 9792731261 (मेरा), 9305754951 (मनीष) तथा 9336280429 (चंदन) है।
मेरी पत्नी एवं तीन मासूम बच्चों को थाना कोतवाली (जौनपुर) में एक रात और एक दिन रखा. दूसरे दिन पत्नी को छोड़ दिया. लेकिन मेरे तीन मासूम बच्चों को मारते-पीटते पुलिस फूलपुर थाने ले गयी. जहां हमें और विनोद को लेकर आये थे। वहां बच्चों को दो दिन रखा गया, और जब इन दोनों का स्वास्थ्य बुरी तरह खराब होने लगा, तब छोड़ दिया गया। फिर मुझे व विनोद को अलग-अलग थाने में रखा गया था। हमें दो दिन चोलापुर में अकेले रखा गया। वहां हम विनोद के बारे में सोच रहे थे कि उसके साथ लोग क्या करे होंगे? हमें अलग क्यों रखा गया? यह सब सोचकर बेचैनी हो रही थी। दो दिन बाद विनोद और हमें सिंधौरा पुलिस चैकी तथा दो दिन फूलपुर थाने में रखा गया।
इतने दिनों में मेरी शारीरिक पीड़ा इतनी ज्यादा बढ़ गयी थी कि मन में आया आत्महत्या कर लूं, लेकिन यह सोचकर रुक गया कि मेरे बाद मेरे परिवार का क्या होगा? मेरे और मेरे परिवार के साथ जो अश्लील हरकतें पुलिस वालों ने की तथा जो यातना दीं, वह असहनीय रहा। दिनांक 13 फरवरी को पुलिस लाइन (वाराणसी) में मारा-पीटा गया. यहां तक कि जबरदस्ती मेरे मुंह में पेशाब पिलाया गया और मेरे लड़के विनोद को भी पेशाब पिलाया गया तथा कान में पेट्रोल डाला गया। जिसकी घृणास्पद पीड़ा बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी।
अभी भी सोचकर घृणा से मन उल्टी जैसा होने लगता है, रोगटें खड़े हो जाते हैं। उसको याद करना नहीं चाहते हैं। यह सब सोचकर पागल हो जाता हूं कि जब इस बारे में लोग जानेंगे, तब लोग क्या सोचेंगे! 18 फरवरी तक वे लोग इधर-उधर नचाते रहे और इसी दिन रात में 8 बजे छोड़ा तथा कहा कि बाहर जाकर कोई कदम मत उठाना, नहीं तो किसी और मुकदमे में फंसा देंगे। वहां पर मैंने उनके हां में हां मिलाया, ‘‘मैं कुछ भी नही करूंगा सर।’’ लेकिन मुझे अपनी लड़ाई लड़नी है। मैने बाहर आकर अपनी लड़ाई लड़नी शुरू कर दी। मुझे न्याय व सुरक्षा चाहिए। परिवार सही सलामत रहे। मेरी रोजी-रोटी में कोई रुकावट पैदा न हो। इसके लिए मैं सरकार से गुहार लगाना चाहता हूं। छोड़ने के तीन-चार दिन बाद एस.ओ. फूलपुर का मेरे मोबाइल पर 11:30 बजे दिन में फोन आया. बोले, ‘‘विनोद को लेकर बाबतपुर चैराहे पर आ जाओ।’’ जब हम फोन पर एस.ओ. साहब से बात कर रहे थे तब घर की महिलाएं बेचैन होकर रोने लगीं और बोली, ‘‘फिर क्या हो गया, कहीं दुबारा बंद न कर दे!’’ हम दोनों लगभग साढे चार बजे बाबतपुर पहुंचे. उन्होंने हमें जीप में बैठने को बोला और दोनो को लंका थाना (वाराणसी) लेकर आये। वहां पर सी.ओ. और एस.ओ.जी. वाले विनोद को गाली देते हुए कड़ी पूछताछ करने लगे। यह देखकर मैं घबरा गया कि कहीं फिर अंदर करके मारना-पीटना शुरू न कर दें। शरीर में सिहरन हो रही थी। अभी भी याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
पूछताछ के बाद लंका से फूलपुर थाने लाये और ट्रक पकड़ा दिया। छोड़ने से पहले बोला, ‘तुम दोनों घर छोड़कर कहीं मत जाना।‘ हमलोग कहीं कुछ कर नहीं रहे हैं. घर पर ही पड़े रहते हैं, जिससे रोजी-रोटी पर मुसीबत आ पड़ी है। जब हमलोग घर पहुंचे तब परिवार वालो में खुशी की लहर दौड़ गई और उन्होंने भगवान को शुक्रिया किया।
सबसे ज्यादा आंतरिक पीड़ा 24 जनवरी को हुई, जब सेठ एफ.आई.आर. कराकर बिना कुछ कहे मेरे बेटे को थाना में छोड़कर चले गये और 12 फरवरी को औरतों व बच्चों के साथ मार-पीट किया गया। उसके बाद 13 फरवरी को मुझे पेशाब पिलाया गया, वह घटना सर्वाधिक तनाव उत्पन्न करती है। जीवन से घृणा-सी होने लगी है। आज भी नींद आधी रात के बाद आती है, अगर बीच में टूट गयी को तो फिर दुबारा नहीं आती. सारी रात एकटक छत को घूरता रहता हूं। दिमाग़ में वही सब बातें आने लगती हैं. नींद नहीं आती। चिंता व डर अभी भी रहता है कि रात में फिर से कहीं कोई न आ जाये और उठा ले जाये।
दूसरी तरफ सेठ जी लोग धमकाते हैं, यहां तक कि एस.पी. के सामने डाक बंग्ला में जान से मारने की धमकी व उठा लेने की बात कहते हैं। जिससे डरता हूं कि कुछ अनहोनी न हो जाए। हमारे विचार में यह है कि मुझे जिस प्रकार से प्रताड़ित किया गया है, उसके एवज़ में मुआवजा मिले और मान-सम्मान पहले की तरह बनी रहे। सच्चाई सभी के सामने आये और दोषियों पर न्यायोचित कार्यवाही हो। मैं खुद चाहता हूं कि मामले की न्यायिक जांच सीबीसीआईडी एवं सीबीआई से करायी जाए।
आपके द्वारा कहानी सुनाते हुए पल-पल की याद आ रही थी और वही बेचैनी व घबराहट हो रही थी। लेकिन ध्यान-योग करने के बाद शरीर में हल्कापन और दिमाग़ में तनाव कम हुआ है। सब कुछ ताजा-ताजा नजर आ रहा है. लग रहा है कि अभी नींद से जागे हैं, सुबह जैसा लग रहा है. इस दस मिनट के योग से बहुत परिवर्तन महसूस कर रहा हूं मन शांत है। मुझे परिवार पर हुए अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़नी है. मुझे न्याय मिले।
उपेन्द्र कुमार के साथ बातचीत पर आधारित.
विशेष सहयोग: बिपिनचन्द्र चतुर्वेदी
डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करेंगे, ऐसा उन्होंने वायदा किया है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है.
Tags: पुलिस उत्पीड़न, लेनिन
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